Bhavy Khatri is a final year postgraduate in the Mathematics and Scientific Computing Department. Let’s have a look at his journey at IIT Kanpur and live the nostalgia and reminiscence with him.

Disclaimer:- The views presented below are the author’s own and are not in any manner representative of the views of Vox Populi as a body or IIT Kanpur in general. This is an informal account of the author’s experiences at IIT K. 


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 

बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले 

Thousands of desires, each worth dying for…

many of them I have realized…yet I yearn for more…

वैसे तो ग़ालिब के कई शेर मशहूर है लेकिन ये शेर दिल को बेइंतहा अजीज़ है, वजह यह है कि ज़िन्दगी के हर मुक़ाम पे ये शेर काम आ ही जाता है। मिसाल के तौर पे जब मैंने ये लेख लिखना शुरू किया तो दिल में कई ख़्याल आए कि अपने पांच सालों की कई कहानियों में से कौन सी लिखूं। हर कहानी ने कुछ न कुछ सिखाया, कभी हंसाया कभी रुलाया। जैसे दोस्तों के साथ हंसी मज़ाक, प्लेसमेंट का संघर्ष, पहले साल में HEC के आँखों में धूल झोंकना और न जाने क्या क्या। अब दिक्कत की बात ये थी कि हमारे लिए तो हर कहानी का एक महत्व है, और हमारा (जी हाँ, हमारी आदत रही है “मेरा” को “हमारा” कहने की, तो झेल लीजिए कुछ समय के लिए) व्यक्तित्व ऐसा कि कहानियां सुनाते नहीं थकते लेकिन न तो आपके पास इतना समय है और न झेलने की क्षमता। तो प्लेसमेंट- इंटर्नशिप की दास्तान को कुछ देर के लिए भूलते हुए ज़िंदगी के एक अलग और अनोखे पहलू की बात करते हैं। बाक़ि विषयों पर मेरे दोस्तों ने काफी बेहतर लेख पिछले साल भी लिखे हैं और इस साल भी लिखेंगे लेकिन फिर भी अगर आप इन विषयों में ही अधिक रूचि रखते है, तो निराश मत होइए, इसको भी छुआ जाएगा मगर एक अलग नज़रिये से, पढ़ते रहिए:

तो कहानी शुरू होती है आठंवी कक्षा से, जब हमारा ध्यान पढ़ाई लिखाई से भटक रहा था। तब नाना जी ने “सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी” का एक शेर सुनाया, ज़िंदगी का पहला शेर जो ज़बानी याद हुआ वो भी यही था:

मिटा दे अपनी हस्ती को अगर​ कुछ मर्तबा चाहे,

कि दाना ख़ाक में मिलकर गुल-ए-गुलज़ार होता है|

Do not attach any importance to your worldly power and position if you want real gain; 

because the seed, only on being crushed into dust, germinates into a new plant.

तब तो हमें ये भी नहीं पता था कि ये शेर भी है, ग़ज़ल से तो दूर दूर तक रिश्ता नाता ही नहीं था। लगा कि ये भी कोई दोहा है, और “सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी” भी कोई कबीर, रहीम जैसे पोएट रहे होंगे। और सच बताएं तो हमें इस तरह के सवालों में ज़्यादा रूचि भी नहीं थी, लेकिन ये शेर बहुत पसंद आया। पढ़ाई लिखाई के लिए तो हर कोई कहता था लेकिन अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई इस हद तक भी बात को समझा सकता है, ये अद्भुत है| ख़ैर इस शेर ने दसवीं, बारहवीं और जे.ई.ई की परीक्षा उत्तीर्ण करने में काफ़ी निर्णायक भूमिका निभाई।

आगे बढ़े तो कैंपस आए, ग़ज़ल से राब्ता और बढ़ा, नाकामियां तो तब तक बहुत देखी थी लेकिन यहाँ की नाकामियां अलग तरह की थीं, यहाँ आप अकेले थे, आपको अकेले ही मुसीबतों का सामना करना था, यहाँ संभालने वाले कम ही थे। ऐसी परिस्तिथि में सहारा बना फ़ैज़ का ये शेर-

दिल ना उम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है,

लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है।

I haven’t lost hope, but just a fight, that’s all; 

the night of suffering lengthens, but it is just a night, that’s all.

चाहे कोर्सेज़ में कम अंक आए हों, या इंटरव्यूज़ में रिजेक्शन रहा हो, हर मुश्किल वक़्त में इसने ढांढस बंधाया। जब उम्मीद हारने लगता तो खुद को समझाता यार “इंटरव्यू है होने दो, जान थोड़ी है, ये सब धुंआ है कोई आसमान थोड़ी है।”

हालांकि शेर के साथ छेड़ छाड़ करना बहुत बड़ा गुनाह माना जाता है लेकिन उम्मीद है राहत इन्दोरी बड़े दिल के हैं(जी हां “हैं” क्योंकि हमारे दिल में वे अब भी जिंदा है) और जब “बुलाती है मगर जाने का नहीं” जैसे memes बर्दाश्त कर लिए तो इस गलती की तो क्या बिसात।

थोड़ा और आगे बढ़े तो लगा कि उर्दू ज़बान को पढ़ना लिखना भी सीखना चाहिए, लेकिन जब छुट्टियों में घर में जब ये “अलग” तरह का शौक़ पूरा करने लगे तो समझ आया कि घरवाले इस तरह कि बातों को फ़िज़ूल समझते है। अब वो क्या समझते है इसको तो हम बदल न पाए लेकिन उस विरोध पर ध्यान न देने का सुझाव देने, “शेख़ इब्राहीम ज़ौक़” ये बतला गए:

दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ,

तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले 

This world is indifferent to wayfarers bound for death,

You may as well go on till your time here is spent.

तो ज़िन्दगी तो यूं ही चलती रहेगी लेकिन ग़ज़ल और ये चंद शेर की ही बात क्यों? वो इसलिए की मैंने इन पांच सालों में जो कुछ मानवीय मूल्यों और जज़्बातों के बारे में सीखा उसमे ग़ज़ल का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ये कहानी बाक़ी सभी कहानियों से बढ़कर है क्योंकि ये ज़िन्दगी की उन छोटी छोटी घटनाओं से सीखने का मौक़ा देती है। और तो और ज़िन्दगी के हर मोड़ पे ग़ज़ल आपके साथ खड़ी रहती है। जब आप बहुत दुखी होते हो, तो उससे आगे बढ़ने का हौसला देती है, दुखी हों और दुखी होना चाहते हों तो उसपे भी शेर है। प्रेमिका को मनाना है तो भी किस बात की चिंता। प्रेमिका छोड़ के चली गयी, दिल को संभालना है…संभल जाएगा और बताइये, यहाँ तक कि इंसानी झुंझलाहट और खीज जैसे जटिल जज़्बातों पर भी शेर लिखे गए हैं| 

और अंततः सबसे बड़ी ख़्वाहिश तो यही है कि ग़ज़ल के साथ मेरा ये प्यार कभी ख़त्म न हो, और बढ़ता रहे…लगातार।


Written by:- Bhavy Khatri

Edited by:- Aaryan Mehar

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