Mr. Faizal Ansari is an undergraduate student in the Chemical Engineering Department from the Y15 batch. Tag along on his joyride to success at IITK.


Before I start I just want to tell you that this article is in Hindi, so it will take a real long time to read. Everything written here is not meant to be believed. Its my experience, lets see how it works for you.

“बाप का, भाई का, दादा का, सबका बदला लेगा रे तेरा फैज़ल”

आदाब!

तो यहाँ से शुरू हुई थी अपनी कहानी इस Campus की, 23 जुलाई 2015 हालांकि में एक बार पहले आ चुका था, मगर उस वक्त हम बस Document Verification के लिए आए थे! मैं, बाबा और रवि भैया, अच्छा वैसे बता दूं की ये पूरा Article मैंने काफी मज़े मज़े में लिखा है! ठीक उतने मज़े में जितने मज़े में मैंने Campus के ये चार साल काटे हैं! माफ़ करना काटे नहीं हैं, ‘ जिए हैं ’! तो हाँ, एक तो ये आदत लगी है यहाँ पर, बोलते-बोलते बहुत कुछ बोल जाने की, इतना कि याद भी न रहे की कहाँ से शुरू किया था! तो कहाँ थे अपन (देखो ये इन्दौरी लफ्ज़ है, जिसका मतलब है तुम और मैं) हाँ तो ये तो समझ गये होंगे की मैं इंदौर से हूँ, तो ज़ाहिर सी बात है कि हिंदी ठीक ठाक होगी और पैदाइश एक मुस्लिम परिवार में हुई तो मादरी ज़ुबान (Mother tongue)  उर्दू रही, Cool बनने के ख़ातिर कभी कभी अंग्रेजी भी बोल लेता हूँ| बहरहाल मेरी आम ज़ुबान काफ़ी ज़्यादा उर्दू-हिंदी-इंग्लिश का Mixture है और ये Article उन्हीं ज़बानों में होगा| देखो फिर भटक गया, हाँ तो मैं बता रहा था कि जिस दिन मैं कानपुर पहली बार आया वो मेरी ज़िंदगी का पहला और सबसे डरावना U.P exposure था,और में काफ़ी घबराया हुआ भी था, क्योंकि sure नहीं था कि Document Verification कैसे होगा, और यहाँ Chemical Engineering में Freeze करना है या Slide करना है या Float, खैर वो तो था ही! ऊपर से UP को लेकर काफी sceptical था | इस पूरे डर के साथ लखनऊ एयरपोर्ट पर Land हुए, Landing तो successful थी मगर दिल में उथल पुथल हो तो क्या करे कोई, जैसे मान लो भार्तेंदु हरिश्चंद्र का वो शेर दिमाग में घूम रहा हो

“किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे

तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं”

*You are going to see so many ashaars in this article, after all thats all my four years in IITK are about.

तो जैसे-तैसे बहार निकले, लखनऊ काफ़ी साफ़ था, कम से कम जो हिस्सा मैं देख सकता था | फिर हमने वहाँ से Cab ली IIT के लिए, आधे रास्ते तक तो मैं काफ़ी खुश था, बाबा के चेहरे पर फख्र देख सकता था, बेटे का IIT में हो जाने का, खैर जो भी हो ये ख़ुशी कहाँ ज्यादा देर को टिकने वाली थी! आधा रास्ता हो गया था और अब मानो धीरे धीरे ये रास्ता future से past की तरफ़ जा रहा हो, जैसे कोई Khalil Gibran का लिखा कलाम हो, गन्दगी की इन्तेहा थी और मैं देश के सबसे साफ़ शहर (Bragging about Indore) से देश के सबसे गंदे शहर जा रहा था अब बाबा और मेरे दोनों के चेहरे की चमक धीरे-धीरे उतर रही थी, बाबा जैसे-तैसे मुझे console कर रहे थे और मैं बाबा को, अब हम गंगा बैराज तक पहुँच गए थे और ड्राइवर भैया ने बताया कि ये कानपुर में घूमने की जगहों में से एक है मैं और बाबा एक दूसरे को देख कर हँस रहे थे और फिर जैसे-तैसे Campus आये! Campus खुबसूरत था तो दिल को तसल्ली हुई, फिर घर वापिस चले गये और फिर आये, 23 जुलाई को! सब कुछ नया था, अपने नए बाप से मिला, निखिल बंसल! अलग ही पर्सनालिटी, मगर निखिल के साथ उनके एक दोस्त और थे और उन्होंने बोला खोलो, पापा ने पहले ही सिखाया था कि ऐसे छोटी-मोटी रैगिंग तो होती ही है, तो सीनियर्स से अच्छी bonding चाहते हो तो जो वो बोले करते रहना! (Two minutes silence for those who dont know what खोलो means)  मैं कुछ करता उससे पहले ही निखिल बोल पड़े ‘अरे! इसे नहीं पता अभी 2 मिनट पहले ही आया है,’ फिर उस सीनियर ने अपना नाम बताया और बोला ‘खोलने का मतलब होता Introduction वो भी हिंदी में,’ मैंने थोड़ा-मोड़ा बताने की कोशिश की और जैसे ही उसने Faizal नाम सुना वो तो हँस कर लोट-पोट! मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा. और बस फिर क्या था 7-8 सीनियर्स ने मुझसे वही बुलवाया जो मैंने इस writeup की शुरुआत में लिखा है,
“बाप का भाई का दादा का सबका बदला लेगा तेरा फैज़ल”
मगर फिर उन्होंने कहा तेरा नाम आज से फैज़ल  नहीं phaijal है और फिर उसके बाद 3 दिन तक यही चलता रहा, फिर जाकर ये पता चला कि ये तो एक मूवी, माफ़ करना “साहित्य” का एक Dialogue है और फिर अपने को चढ़ गया एक जुनून, अब मुझे ये फैजल खान बनना था, और पूरे चार साल माँ कसम उसी में गुज़रे हैं! पूरी ऐश में, ख़ुदा जाने कब कैसे ये सब होता गया, कहाँ P.E. में डेली सुबह 6 बजे उठकर जाते थे, और फिर कहाँ Nightout मारते थे क्यूंकि
“6 बजे उठने से कई गुना आसान है 6 बजे तक जागना”| तब ये biometric का अज़ाब नहीं था न, तो क्लास जाओ न जाओ कोई फ़र्क नहीं पढता था!

जैसे तैसे एक semester गुज़रा, पहली बार किसी टेस्ट में zero मार्क्स देखे, पहली मर्तबा Coding की और खुद को महान coder माना खैर उसमे के एक दोस्त ने बहुत मदद की! और तब ही समझ आया की यहाँ ज़िंदा रहना है तो ऐसे 2-3 दोस्त तो चाहियेंगे ही, क्योंकि 4 साल में बहुत से ups and downs आएँगे और तुम्हे ये डिग्री की जिप्सी चलानी पड़ेगी, भले ही मन हो या न हो! मेरी मानो तो अगर मन न हो तब भी हमेशा एक कोई सी चीज़ safe में रखना ताकि जब भी ऊंचाई से गिरो तो उस safe bar से नीचे न गिरो, जो लोग मुझे दूर से जानते हैं वो ये ही सोचते हैं कि कैसा शख्स है मस्त मज़े से स्टार्टअप कर रहा है, प्लेसमेंट में भी नहीं बैठा और आर्टिस्ट बन्ने चल दिया है, ऐसा भी भला करता है क्या कोई? मगर शायद उन्हे पता नहीं ये ही तो मेरा safe play है आर्ट का धंधा अच्छा नहीं चला तो स्टार्टअप में आजाएंगे और वो भी नहीं चला तो वो जो कंपनी PPO दे रही थी वहाँ पहुँच जाएँगे, तो कुल मिलाकर ये सारे स्टेप्स काफ़ी ज्यादा calculated हैं, वैसे कुछ पता नहीं की calculation कितनी सही बैठेगी मगर एक बात तो sure है, बहुत नीचे नहीं गिरूंगा! क्यूंकि, तब भी होंगे मेरे पास मेरे वो यार जो मैंने सच में कमाए हैं! तो कुल मिलाके सब जगह एक Transactional Investment है, लोगों में, चीज़ों में Experiences में हर जगह और तो और उन अजीबो गरीब Decisions में भी|

आप नहीं जान सकते की आप कहाँ गिरेंगे मगर जब तक उड़ रहे हैं तब तक तो शौक से उडें!”

वैसे भी जौन एलिया का वो शेर है न कि

“ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को

अपने अंदाज़ से गँवाने का”

तो बस अपने अपने अंदाज़ से गवाते रहो और ऐश करो, चार साल में बहुत सी चीज़ें आएगी, कहाँ तुम महीने भर पहले सब पढ़ लेते थे और अब कहाँ आखिरी दिन है एग्जाम का और ये आर्टिकल लिखने के बाद पढाई शुरू करोगे और वो भी तब जब तुम्हारा दोस्त M.T. से एनर्जी लेकर लौटेगा (Dont know why am I writing this here, but तम्बाकू सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है!) मेरे बापू ने कहा था कि सुनो “यहाँ तुम सिर्फ पढने आये हो तो वो करो, या जो करने आए हो वो करो, मगर मैं तो ये जानता ही नहीं था कि क्या करूँ? तो उन्होंने ऐसे ही फिलोसोफी उड़ाते हुए बोला तुम भी सीख जाओगे! मुझे भी लगा शायद सीख जाऊंगा, मगर आज तक कुछ नहीं सीख पाया मगर एक बात तो साफ़ थी की पूरे चार साल वो करा जो करना चाहता था बस जानता नहीं था!और आज यहाँ हूँ, कोई बुरी जगह नहीं है जहाँ हूँ, और काफी चिल्ल मारा है यहाँ चार सालों में और काफी घीस कर काम भी किया है, first year में galaxy, हाय अल्लाह क्या दौर था, Akshay Singhal नाम के ये एक अजबतरीन शख्स, आज जहाँ हूँ वहाँ लाने में मेहनत शायद हर एक दरपेश की है, ठीक वैसे जैसे एक गुलाब खिलाने में छोटी छोटी कलियों का भी हाथ होता है, और उस बड़े से शजर का भी जो शायद ही कभी किसी को ख़ूबसूरत लगे| एक रात में structures खड़े कर देना, पहली बार स्टेज पर चढ़के कविता पढना, बम्बू काटके गूगल में नौकरी ensure कर लेना (ये सच है, बम्बू ज़रूर काटना)  और चीख चीख के चिल्लाना हाल 5 की माताजी के बारे में, हाल 1 के डरावने किससे कि “Friday रात को कोई गया तो monday morning को लौटेगा| और हॉल 3 का हॉल एंथम गाना ( गैलेक्सी तब तक ही होती थी जब तक हॉल 3 जीतता था क्यूंकि गैलेक्सी होती ही उनके लिए है, haters can dislike this post) रात को बैठके एक साथ phy102 में घिसना, और न जाने क्या क्या, सुनाने लगूं तो उम्र लग जाए खैर पहला साल ख़त्म करते हैं! दुसरे साल में SAE में काम किया एक गाडी और न जाने कितने दोस्त बनाए, सब के सब मेरे ही जैसे एक नंबर के हरामी, एक बार का वाक़या है, अंतराग्नि चल रही थी और मैं, और कुछ लौंडे सुबह 5 बजे carbon fibre laying कर रहे थे कार की सीट के लिए! मुहब्बत सी हो गयी थी उस जगह से, पढना भी होता था तो वर्कशॉप में बैठकर पढ़ते थे आखिर DR 1 भी तो वहीँ था, पहला फ़क्का भी तभी खाया, दुःख हुआ मगर आज लगता है वो सब एक Process थी खुद को काबिल बनाने की और शायद ज़रूरी था ये जानना की काम चोरी करोगे तो गिरोगे! खूब रोया और फिर उस कोर्स को Summers में करके A लाया बहुत सुकून सा मिला, Second year भी ख़त्म हुआ Third year में तो हद ही हो गयी मेरी किस्मत की, एक ऐसा परिवार मिला जिसपे फख्र है! और शायद ता’उम्र रहेगा जहाँ हमने इन्तेहाई rationalism की बातें करी और वहीँ ऐसे बातें भी हुई जिनका किसी से कोई मतलब न हो मगर सुकून मिलता है| Third year ही था जहाँ से Performing का चस्का चढ़ा, पहला corporate show किया Housefull अलग ख़ुशी होती है वो सब भी! ग़ज़ल,नज़्म,कहानी लिखना सीखा और न जाने क्या-क्या! और ऐसे ही ख़त्म हुआ वो साल भी और उससे जुडी हर एक चीज़! आखिर में आया ये कहानी का आखिरी साल जहाँ सारे किरदार छूट जाने को हैं और न जाने कब दिखें! अब लिखने की और हिम्मत नहीं है और शायद तुममे पढने की भी नहीं तो बस इसपर ख़त्म करते हैं! और तुम सब लोगो की जानिब जौन का एक शेर कि

“कहानी ख़त्म होने वाली है,
तुम मेरी आखिरी मुहब्बत हो|”

मैं अक्सर पोस्ट हिंदी में ही लिखता हूँ मगर आज उर्दू अपने आप लिखा रही, शायद इसलिए की वो मेरे शहर, मेरे मुहल्ले, मेरे घर की ज़बान है और तुम सब एक खानबादा हो, एक परिवार हो! मैंने सिर्फ दुनियाई तौर पर इस जगह को खानबादा नहीं लिखा है, इस जगह में असल में वो इत्तेफाक है, लोग यहाँ ठीक उसी नाफाकत से रहते हैं जैसे हम आप घर में रहते होंगे| कोई भी परेशानी हो, कुछ भी हो कभी भी किसी भी वक्त फ़ोन या मेसेज करो कोशिश करूँगा की साथ निभा पाऊं |

राहत इन्दौरी साहब, मेरे पहले साल में कैंपस आये थे और मैंने उन्हें ग्रीन रूम में अपने टूटे-फूटे अश’आर दिखाए थे और उन्होंने अहमद मुश्ताक़ का ये शेर कहा था कि :

“नए दीवानों को देखें तो ख़ुशी होती है

हम भी ऐसे ही थे जब आए थे वीराने में”

मैं अदब या Literature में तो शायद उतना बढ़ा नहीं तुमसे, मगर उम्र के हिसाब से ये शेर तुम्हारे हवाले करता हूँ|

Vox का बेहद शुक्रिया मुझ तक पहुँचने का, और ये कहानी लिखने के लिए कहने का|
माफ़ी उन तमाम लोगों से जिन्हें इसमें से कुछ भी बुरा लगा, मगर कसम से बिना सोचे समझे बस जो आता रहा लिखता गया| और वैसे भी मैंने कोई ठेका तो नहीं लिया हर एक को खुश करने का, आखिर


“एक ही फ़न तो हम ने सीखा है

जिस से मिलिए उसे ख़फ़ा कीजे”

चलो खुदाहाफिज़,

मिलते रहेंगे, ढेर सारी  मुहब्बत!

IITK का टेम्पो, हाई है!
फैज़ल अंसारी

Edited by Yogeshwar

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