As We Leave #5: स्वर्ग की सीढ़ी

Yash Srivastava is a Y17 BTech student from the Department of Electrical Engineering. He writes a creative version of a Mahabharata episode, with the subtle underlying context of IITK.

Disclaimer:- The views presented below are the author’s own and are not in any manner representative of the views of Vox Populi as a body or IIT Kanpur in general. This is an informal account of the author’s experiences at IIT K. 


नमस्कार मित्रों, आईआईटी कानपुर से स्नातक डिग्री पाने से पूर्व, आप सभी के लिए एक कहानी प्रस्तुत है। 

यह कहानी महाभारत काल की है। महाभारत इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था जिसमें हजारों-सैंकड़ों की संख्या में लोग मारे गए थे। चचेरे भाइयों के बीच हुए इस युद्ध में पांडव पुत्रों की जीत हुई थी। सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध के कुछ वर्ष पश्‍चात् पांडव द्रौपदी सहित स्वर्ग की यात्रा पर निकल गए थे। इस यात्रा में धर्म रूपी काला कुत्ता भी उनके साथ गया था। किवदंती है कि पांडवों की स्वर्ग यात्रा बेहद रहस्यमयी थी जिसमें स्वर्ग तक केवल युधिष्ठिर ही पहुंच पाए थे। बाकी चार पांडवों और द्रौपदी की इस यात्रा के दौरान ही मृत्यु हो गई थी।

सबसे पहले हुई द्रौपदी की मृत्यु 

महाभारत ग्रंथ में वर्णित 18 पर्वों में से एक है – महाप्रस्थानिका। इस पर्व में पांडवों की मोक्ष की यात्रा का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार पांडव पूरे भारत की यात्रा के पश्चात् मोक्ष प्राप्ति हेतु हिमालय की गोद में चले गए थे। पांडवों को हिमालय के मेरु पर्वत के पास स्वर्ग का मार्ग मिला था।

स्वर्ग की यात्रा के दौरान केवल युधिष्ठिर ही थे जो सशरीर स्वर्ग तक पहुंच पाए क्योंकि द्रौपदी व अन्य सभी पांडवों ने अपने जीवनकाल में कभी न कभी अधर्म का साथ अवश्य दिया था। इसी क्रम में सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई क्योंकि वह अपने पतिधर्म का पालन नहीं कर सकी थी। इसका कारण था अर्जुन। द्रौपदी अर्जुन को अपने बाकी चार पतियों से अधिक प्रेम करती थी और इसी वजह से वह अधर्म की पात्र बनी।

सहदेव की मृत्यु

द्रौपदी के बाद सहदेव की मृत्यु हुई क्योंकि वह स्वयं को बहुत बुद्धिमान समझता था। उसके इसी अहंकार ने उसे मोक्ष की यात्रा पूरी नहीं करने दी।

नकुल ने त्यागे प्राण

इसके बाद नकुल ने अपने प्राण त्याग दिए क्योंकि उसे अपने आकर्षण और सुंदरता पर बहुत घमंड था।

अर्जुन की बारी

अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या पर बहुत गर्व था। वह अपने बल और दक्षता पर अभिमान करता था। इन्हीं कारणों की वजह से अर्जुन अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाया।

भीम की भूख

अर्जुन के पश्चात् भीम की मृत्यु हुई। इसका कारण था कि भीम ने अपने पूरे जीवन काल में दूसरों की क्षुधा की चिंता किए बिना अत्यधिक भोजन ग्रहण किया। उसकी इसी स्वार्थ प्रवृत्ति के कारण वह भी मौत का निवाला बन गया । 

युधिष्ठिर का साथी

सभी की मृत्यु के पश्चात युधिष्ठिर ने अपनी आगे की यात्रा उस धर्मरूपी काले कुत्ते के साथ पूरी की। यह काला कुत्ता धर्मराज थे जिन्होंने अंतिम समय तक भी युधिष्ठिर का साथ नहीं छोड़ा था। केवल युधिष्ठिर ही ऐसे थे जो सशरीर स्वर्ग पहुंच पाए थे।

आज हम सभी अपने अंदर अथवा समाज में उपरिलिखित चारों पांडवों और द्रौपदी की कमियों को अनुभव कर सकते हैं। परन्तु आज यह कहानी किस रूप में सार्थक है?

आज हम सभी मित्र अपने – अपने क्षेत्र में कुशल होकर उस स्वर्ग की ओर अग्रसर होने जा रहे हैं जिसकी हम सभी ने कभी न कभी कामना की थी। इसलिए वहां पहुंचने के लिए जो मार्ग युधिष्ठिर ने बताया उसी पर चलना होगा। युधिष्ठिर अर्थात् जो युद्ध में स्थिर है, और जिन्होंने कभी धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा। धर्म क्या है?  इसको परिभाषित करना जितना कठिन है, उतना ही सरल भी है। चूंकि हम विज्ञान के बच्चे हैं, इसलिए हमारे लिए विज्ञान ही धर्म की एक परिभाषा हो सकती है, परन्तु उस विज्ञान का आधार सत्यरूपी होना चाहिए । सत्य की शक्ति का अनुमान हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन से भी लगा सकते हैं। जहां गांधीजी का चश्मा हमें सत्य को देखने की सीख देता है, वहीं उनके हाथ में डंडा अधर्म के विरुद्ध युद्ध का परिचायक है। इसी प्रकार हमारे आगे के जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं के लिए हमें धर्म का मार्ग ही अपनाना होगा।

Written by- Yash Srivastava

Edited by- Jiya Yadav, Pradeep Suresh, Abhimanyu Sethia

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