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शब्दों के परे: आईआईटी कानपुर में भाषा संबधी बाधाएं

**अस्वीकरण - ये एक अज्ञात सर्वेक्षण के परिणाम हैं जो प्रतिक्रियाओं और उनकी वैधता का प्रमाण नहीं है। प्रतिक्रियाएँ आईआईटी कानपुर के वास्तविक परिदृश्य को प्रतिबिंबित कर भी सकती हैं और नहीं भी। सर्वेक्षण का उद्देश्य इन भाषाई बाधाओं को ध्यान में लाना था - लेकिन पाठकों को एक गुमनाम सर्वेक्षण की सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए - यह लोगों को स्वतंत्र रूप से साझा करने की अनुमति देता है, लेकिन दावों और उनकी सटीकता की पुष्टि नहीं की जा सकती है**

आई आई टी कानपुर एक ऐसा शिक्षण संस्थान है जहां पर भाषागत विविधता आमतौर पर देखी जा सकती है। जब विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले वक्ता बातचीत करते हैं, तब अक्सर वह खुले और मुक्त संचार में बाधा का अनुभव करते हैं। पहले दिन जब SGs हिंदी में कुछ बताते है या संवाद करते हैं और जब प्रोफेसर की अंग्रेजी समझना पाठ्यक्रम को समझने से भी बड़ी बाधा होती है। विस्तृत रूप से जानने के लिए हमारी VOX टीम ने शैक्षणिक और सह-पाठ्यचर्या क्षेत्रों के भीतर कैंपस में इन भाषा बाधाओं का विश्लेषण करने का प्रयास किया। हमें क्या मिला यह देखने के लिए आगे पढ़ें।

परिसर में भाषा संबंधी बाधाओं से संबंधित हमारे सर्वेक्षण ( जो जुलाई 2023 में किया गया था ) में 343 छात्रों ने प्रतिक्रिया दी। निम्नलिखित इन्फोग्राफिक्स उनकी भाषा पृष्ठभूमि और उस भाषा को दर्शाते हैं जिसका उपयोग उन्होंने अपनी बोर्ड परीक्षाओं को पूरा करने के लिए किया था। इससे हमें उत्तरदाताओं की भाषा पृष्ठभूमि के बारे में कुछ जानकारी मिलती है और बाद के विश्लेषण के लिए भी जगह मिलती है। अधिकांश लोग हिंदी और अंग्रेजी में सहज हैं, लेकिन उन छात्रों के बारे में क्या जो इस श्रेणी में नहीं आते हैं? उनके लिए क्या प्रयास किए गए हैं? क्या यह पर्याप्त और सहायक है? इन समस्याओं से निजात पाने के लिए और क्या प्रयास किए जा सकते हैं? ये कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर हमने इस लेख के माध्यम से पाने का प्रयास किया है।

शैक्षणिक गतिविधियों पर असर

किये गए सर्वे के अनुसार विद्यार्थियों में भाषा को लेकर एक विभाजन निश्चित तौर पर देखा जा सकता है। ज्यादातर छात्रों को तो कोई खास दिक्कत नहीं है पर लगभग 10% छात्रों को अंग्रेजी के प्रयोग से दिक्कत है, जो इंस्टिट्यूट की औपचारिक भाषा है। अंग्रेजी में आत्मविश्वास से संवाद करने में उनकी असमर्थता के कारण, जिन्होंने सर्वे फॉर्म भरा था उनमें से लगभग 19.8% विद्यार्थी प्रोफेसर से बात करने में हिचकिचाते हैं और लगभग 9.3% विद्यार्थी लेक्चर समझने में मुश्किल महसूस करते हैं। ये आंकड़े महज़ आँकड़े नहीं हैं, बल्कि एक कड़वी हकीकत बयाँ करते हैं। हमारे जैसे कठिन पाठ्यक्रम के साथ, ऐसी बाधाएं सीखने को लगभग असंभव बना सकती हैं, और छात्रों के लिए अपने साथियों के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो सकता है।

अलग अलग प्रोफेसर्स से बात करने पर भी एक ही तरह की प्रतिक्रिया हमारे सामने आई। कुछ प्रोफेसर्स ने बताया की कुछ बच्चे हैं जो उनके पास अपनी परेशानी लेकर आये और उनको बताया कि उन्हे पाठ्यक्रम सामग्री को समझने में दिक्कत होती है क्योंकि वह अंग्रेजी में है और उनको अंग्रेजी बोलने और समझने में परेशानी होती है। जिसके कारण वह अपने आप को अपने साथियों से कमजोर महसूस करते हैं। प्रोफेसर्स जो अंग्रेजी कोर्सेज लेते हैं (जैसे कि  ELC और ENG)  काफी सहायक है। वे छात्रों को फ़िल्में और किताबें बताते हैं जो उन्हें बेहतर ढंग से अंग्रेजी समझने में सहायक होते हैं।

कुछ विद्यार्थियों ने यह भी बताया कि अंग्रेजी में आत्मविश्वास न होने के कारण वे अकादमिक चर्चाओं में भाग लेने से भी कतराते हैं। संस्था ने ENG112 और COM200 के जगह पर Y22s के लिए English Language Course(ELC 111/112/113) को आरंभ किया था जिसकी प्रभावशीलता को लगभग 57.2% विद्यार्थियों ने अंग्रेजी सुधारने में अक्षम बताया है। ELC course सभी को English Diagnostic Test के माध्यम से बांटा जाता है। ELC113(Advanced) पाने वाले कुछ विद्यार्थियों ने आश्चर्य जताया है क्योंकि उनकी अंग्रेजी अच्छी न होने पर भी उन्हें ये कोर्स मिला है। COM200 लेने वाले विद्यार्थियों में से 72.09% (157) ने इस कोर्स को “समय की बर्बादी” बताया था। 

कुछ प्रोफेसर इस बात से सहमत हैं कि पाठ्यक्रम में एक अंग्रेजी पाठ्यक्रम, एक छात्र के लिए कितना अंतर ला सकता है, इसकी एक सीमा है। उनका मानना है कि छात्र समुदाय के भीतर से मिलने वाले समर्थन का अधिक प्रभाव हो सकता है। एक और अवलोकन जो उन्होंने बताया वह यह था कि ELC पाठ्यक्रम (पूर्व में ENG112) अंग्रेजी से जूझ रहे छात्रों को बाकी पाठ्यक्रमों के समानांतर चलने में मदद करने की कोशिश करते हैं। पर जो छात्र अंग्रेजी में कमजोर है और नई भाषा को सीख रहे हैं उनके लिए कॉलेज द्वारा पाठ्य सामग्री को अंग्रेजी में पढ़ना और अपने उत्तर को अंग्रेजी में प्रस्तुत करना कुछ हद तक कठिन हो जाता है। जब तक वे अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ बनाते हैं, तब तक उनका अधिकांश सेमेस्टर समाप्त हो चुका होता है और वे शैक्षणिक रूप से नुकसान में रहते हैं।

अंग्रेजी का अभ्यास करने के लिए उपयुक्त वातावरण की कमी भी समस्या का एक हिस्सा है, जैसा कि कई उत्तरदाताओं ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों में उल्लेख किया है। यहां तक, कुछ ने तो ये भी बताया कि अक्सर TA और Tutors बात-चीत में हिंदी का प्रयोग करते थे जो कि उन विद्यार्थियों के लिए एक बाधा थी जिन्हें हिंदी नहीं आती थी।

जब उनसे पूछा गया कि क्या क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम शुरू करने से फायदा होगा? तब कुछ प्रोफेसर्स ने यह भी वर्णित किया कि अंग्रेजी में काम करने का संघर्ष ऐसा है जिसे टालना नामुमकिन हैं, क्योंकि अंग्रेजी आज दुनिया की भाषा है, और अपने व्यवस्यायी जीवन में विद्यार्थियों को इस भाषा के साथ काम करना होगा। हिंदी में लेक्चर लेने या हिंदी और अंग्रेजी को सयोंजकर लेक्चर लेने मे कुछ प्रोफेसरों को लगता है कि वे न केवल संस्थान के शिक्षण के स्तर से समझौता करेंगे, बल्कि वे छात्रों के उस संघर्ष में भी विलंब ला रहे हैं जिसका सामना उन्हें अंततः करना हैं।

सामाजिक जीवन में तनावपूर्ण स्थिति

पढाई के अतिरिक्त, विद्यार्थियों को सामाजिक जीवन में भी भाषा रूपी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। सर्वे में 16% बच्चों ने बताया कि इसके कारण उन्हें विभिन्न क्लब गतिविधियों में परेशानी का सामना करना पड़ता है व 18.1% को तो दोस्त बनाने में भी मुश्किल होती है। जिसका मुख्य कारण यह है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों को धाराप्रवाह समझने और बोलने में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

सर्वे में 15.5% उत्तरदाताओं ने हिंदी में असमर्थता व्यक्त की है। हिंदी में धाराप्रवाह बातचीत करने में असमर्थता कई अन्य समस्याओं को उजागर करती है। एक आम समस्या जो देखी गई है वो ये है कि mess workers और maintenance staff  सिर्फ हिंदी में ही बात करते हैं। कैंपस में होने वाली अधिकतर गतिविधियां भी हिंदी में ही होती हैं जिसके करण काफी लोग नए लोगों से बात करने में खुद को अक्षम पाते हैं। शाराह पी.एस., मलयालम बोलने वाली एक Y22 UG छात्रा ने बताया है कि कैसे उन्हें हर बार एक हिंदी में सहज मित्र को अपने साथ ले जाना पड़ता है ताकि वे दुकनदारों से बात कर सकें। यहां तक कि उन्हें अपने मित्रो से भी बात करने में मुश्किल होती है क्योंकि वे सिर्फ अंग्रेजी में ही उत्तर दे सकती हैं । एक उत्तरदाता ने तो ये भी बताया कि जब वे एक सरकारी योजना के बारे में जानने के लिए दफ्तर गए थे तो अधिकारी ने उन्हें सिर्फ हिंदी में ही बात करने के लिए कहा था। “यह समझाने के बाद भी कि हम हिंदी नहीं बोल सकते, अधिकारी ने हमें हिंदी सीखने के लिए कहा, कई बार इसका जिक्र किया और इसका मज़ाक उड़ाया।”

पहल

पहले, अंग्रेजी में कमजोर छात्रों को दो माध्यमों से मदद दी जाती थी। एक तरीका तो औपचारिक था जिसमे सभी कोर्स आते हैं। ऑफर कियें जाने वाले कोर्स थे ENG112 और COM200। और दूसरा था अनौपचारिक तरीका जिसमे आती थी English Speaking Classes by DoSA, TTC(Technical Terminology Classes) और ECC(English Communication Classes) जो कि Institute Counselling Service(ICS) द्वारा आयोजित किया जाता था।

ENG112 course EDT (English Diagnostic Test) के माध्यम से दिया जाता था जो की orientation के समय होता था। ये एक अधिक कोर्स था जिसे बच्चे तब करते थे जब बाकी बच्चे HSS Level 1 course करते थे लेकिन इसे HSS का नाम नहीं दिया गया था जिसके कारण बच्चों को एक अधिक कोर्स करना पड़ता था। इस वजह से बच्चों के curriculum में भी दिक्कत आती थी जिसके चलते बाद में ENG112 को भी HSS Level 1 Course बना दिया गया था, लेकिन इसके पाठ्यक्रम को फिर भी नहीं बदला गया था। Y21 बैच तक COM200 एक पाठ्यक्रम था जिसे लेना सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य था। इसमे भी कुछ खामिया थी जैसे पाठ्यक्रम में अत्याधिक विद्यार्थियों का होना, बच्चों में भाषा की विविधता का होना तथा पाठ्यक्रम में दिए गए समय का अपर्याप्त होना। चूंकि ये कोर्स कोई विशेष विभाग तो लेता नहीं था इसलिए असफल होने वाले विद्यार्थियों को कई मुश्किलों का सामना करना पडता था।

इसकी जगह पर Y22 batch के लिए ELC111(Basic), ELC112(Intermediate) और ELC113(Advanced) course को लाया गया था। अब सभी विद्यार्थियों के लिए प्रथम वर्ष में एक अंग्रेजी का कोर्स लेना अनिवार्य है जिसका फैसला EDT से होगा। कोर्स केवल कुछ हद तक ही बच्चों को मदद कर सकता है। इस खामी को ICS ने पहचाना और TTC aur ECC प्रदान करना शुरू किया था। DoSA ने भी इंग्लिश स्पीकिंग क्लास लेना शुरू किया था। सभी की ये पहल बच्चों के लिए काफ़ी मददगार साबित हुई थी। लेकिन वे इंस्ट्रक्टर जो इंग्लिश स्पीकिंग क्लास लेते थे, उनके कैंपस छोड़ते ही ये क्लास भी बंद हो गई और उधर ICS की क्लासेस में भी विद्यार्थियों की संख्या गिरती चली गई। यहां तक ​​कि जिन प्रोफेसर्स से हमने बात की, उन्होंने भी छात्रों की नई भाषा सीखने की अनिच्छा पर ध्यान दिया। कुछ प्रोफेसरों ने पहले सेमेस्टर की शुरुआत से पहले अंग्रेजी पाठ्यक्रमों की पेशकश करने का सुझाव दिया।  शायद एक विस्तारित ओरिएंटेशन, जिससे छात्र अंग्रेजी में पढ़ाए जाने वाले अन्य पाठ्यक्रमों को संभालने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हो सकें।

नये UGARC के आने से पहले सभी विभाग communication पाठ्यक्रम प्रदान करते थे जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों में संचार कौशल विकसित करना होता था। उदाहरणानुसार गणित विभाग के प्रोफेसर छात्रों को प्रूफ़ लिखना सिखाते थे तो वहीं इलेक्ट्रिकल विभाग के प्रोफेसर मुख्य तौर पर Resume लिखना सिखाते थे, जिसको Y22 से रोक दिया गया है। ये department-level communication courses को Y22 बैच के साथ बंद कर दिया गया एवं  ELC को इसका एक बेहतर रिपलेसमेंट के रूप में देखा जाने लगा। किसी भी कोर्स की कमियों को 2-3 बैच की समीक्षा के आधार पर दूर किया जाता है। अभी सिर्फ Y22 की प्रतिक्रिया पर कोर्स में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।  

“हालांकि, यह सच है कि कोई भी प्रणाली किसी भी तरह से परिपूर्ण नहीं है, लेकिन इसकी सारी अक्षमता प्रशासन पर नहीं पड़ती है। किसी भी प्रणाली की प्रभावकारिता अंततः उन लोगों पर निर्भर करती है जिन्हें वह लाभान्वित करती है, और हर प्रकार से ELC केवल तभी वास्तव में अपने उद्देश्य को पूरा कर सकता है यदि जो लोग सच में अपने अंग्रेजी संचार कौशल में सुधार करना चाहते हैं वे वास्तव में भाग लेते हैं और इसका पूरा लाभ उठाते हैं। इसके अलावा, यह उल्लेखनीय है कि एक उच्च-स्तरीय ELC पाठ्यक्रम को हमेशा उन छात्रों द्वारा OE पाठ्यक्रम के रूप में लिया जा सकता है, जिन्होंने पहले निम्न-स्तरीय पाठ्यक्रम किया था और अपने अंग्रेजी संचार कौशल को आगे बढ़ाने में रुचि रखते हैं ”  – किंशुक सियोल, Senate Under-Graduate Committee (SUGC) के student nominee. 

शिवानी सेंटर, जिसकी स्थापना अगस्त 2021 में हुई थी, एक और माध्यम है जिसकी स्थापना आई आई टी कानपुर में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को फिर से शामिल करने के उद्देश्य से हुई थी। शिवानी सेंटर का मुख्य उद्देश्य उन नए छात्रों की मदद करना है, जिन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा और जेईई यात्रा हिंदी में पूरी की है और उन्हें पूरी तरह से अंग्रेजी शिक्षा में समायोजित किया जा सके। जिन बच्चों को हिंदी ना आने की वजह से दोस्तों से बात करने में दिक्कत होती है उनके लिए शिवानी सेंटर में हिंदी कक्षाएं भी प्रदान की जाती हैं। हिंदी के अलावा यहां क्षेत्रीय भाषाएँ जैसे तमिल, मलयालम या कन्नड़ भी सिखाई जाती है। 

EPP, एक अंग्रेजी दक्षता कार्यक्रम है जिसे उन लोगों के लिए एक पाठ्यक्रम की तरह अयोजित किया जाता था जो अंग्रेजी को सीखना और उसमें सुधार करना चाहते थे लेकिन कोरोना के चलते इसे बंद करना पड़ा था। इसके योजना के पीछे मुख्य रूप से प्रोफेसर भास्कर दासगुप्ता शामिल थे और उनके साथ और भी संकाय सदस्य और छात्र निकाय भी शामिल थे। इस प्रोग्राम ने छात्रों को प्लेसमेंट सीज़न में काफ़ी मदद की थी। प्रोफेसर भास्कर दासगुप्ता के नेतृत्व में एक समूह वर्तमान में कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम कर रहा है और अंग्रेजी टीम और तकनीकी टीम में शामिल होने के लिए volunteers की तलाश कर रहा है, जिसके संबंध में वह शीघ्र ही studentlist पर लिखेंगे।

निष्कर्ष

संक्षेप में, परिसर में भाषा संबंधी बाधाएँ वास्तविक हैं और छात्रों को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से प्रभावित करती हैं। पाठ्यक्रमों और सहायता सेवाओं जैसे निरंतर प्रयासों के बावजूद, बाधा बनी हुई है। इसके लिए प्रयासों में सुधार की आवश्यकता है, न केवल इसे प्रदान करने वालों द्वारा बल्कि उन छात्रों द्वारा भी जिन्हें इनकी आवश्यकता है। जैसा कि हम देखते हैं, यह लेख कैंपस जनता को ऐसे भाषाई मतभेदों के प्रति जागरूक होने और उनसे सहानुभूतिपूर्वक निपटने की आवश्यकता भी बताता है। समझने और अधिक समावेशी होने का प्रयास आवश्यक है। ये सिर्फ संख्याएं नहीं हैं, बल्कि साथी छात्र भी हैं जिन्हें हम अपने आसपास संघर्ष करते हुए देखते हैं। हमें स्थिति की बेहतरी के लिए किए जा सकने वाले छोटे-छोटे प्रयासों के बारे में सोचना चाहिए।

लेखक: अभिजीत जौहरी, आदित्य वीएस, गुपिल छाबड़ा, महाराजन जे, श्रुति सुब्रमण्यम
अनुवादक: प्रदीप बागरी, हिंदी साहित्य सभा और संकेत बंसल
संपादक: कुणाल गौतम, मोहिका अग्रवाल
डिजाइनर: मृण्मय सूर्यवंशी, सचिदानंद नाविक, वरदान विग